Brief History of the College

Rajkiya Sanskrit College, Kajipur, Patna-4 is one of the constituent Post- graduate Colleges of Kameshwar Singh Darbhanga Sanskrit University, Darbhanga. The establishment of the College was result of the erudite legacy of patliputra. Located in the heart of the city, the foundation-stone of the college was laid in the presence of the Hon'ble First President of India, Dr. Rajendra Prasad, the First Chief Minister of Bihar, Sri Krishna Singh and the Hon'ble First Governor of Bihar, Dr. Zakir Hussain.

Gifted with land-area, building and career-oriented teaching, the college is progressing in its all-round development. Lush-Green compound presents a serene atmosphere not seldom meant for profound studies and research work. Well-disciplined students, plunged in incantation of Ved- Mantras are the souls of the college, augmenting additional charm to the atmosphere. Deep delves of "Ano Bhadrah Cratawo Yantu Viswatah" embellish the teachers with a sense of fathomless dedication towards teaching the students.

In the state of Bihar, this college is the oldest Rajkiya Institution imparting oriental learning to the students. The Government of Bihar, in 1954, started novel pattern of the Sanskrit education and the college was established with a view to engineer a sense of deep-feeling for the oldest Indian culture. For the development of the Sanskrit education, the Government of Bihar declared a "Karnadhar Committee" which submitted its report to the Governing Committee headed by the Commissioner of Patna Division. The chairperson of the Karndhar Committee was the Editor of ARYAVARTA, Sri Srikant Thakur and members being Sri Ram Padarath Sharma, Regional Director of Education, Patna Division and Sri Jai Shankar Jha, the-then Principal of Government Sanskrit College, Patna. The Governing Committee was constituted under the chairmanship of Sri Harinandan Thakur, IAS. The members being Padmashree Sri VishnuKant Jha and others.

Previously, regarding examination, Government Sanskrit College, Patna was affiliated to Bihar Sanskrit Association. Besides Veda, Vyakaran, Sahitya, Jyotish, Darshan, Puran and Darmashastra, modern subjects like English, Hindi, History, Political Science and Psycology etc, were added to the list. How can we forget the sacrifice of Hon'ble Maharajadhiraj of Darbhanga, Dr. Sir Kameshwar Singh, who left the Palace for K.S.D Sanskrit University. Now began the phase of Graduate and Postgraduate level examinations being conducted by matriculation the University. Bihar Sanskrit Siksha Board, Patna now conducts only level examination.

This college became a constituent unit of Kameshwar Singh Darbhanga Sanskrit University in 1981. The college is also registered with University Grants Commission under Section 2(f) & 12(b).

Courses run by the college
  • UPSASHTRI (Intermediate equivalent) - Two Years
  • SASHTRI Gen. (B.A equivalent) - Three Years
  • SASHTRI Hons. (B.A equivalent) - Three Years
  • ACHARYA(P.G equivalent) - Two Years

Note:- Acharya i.e master degree course is divided into four semesters of Six months each Subjects:- Sahitya, Vyakaran, Jyotish, Veda, Dhaanshashtra, Darshan, Puran, English, Hindi, Pol. Science, History, Economics.

महाविद्यालय का संक्षिप्त इतिहास
श्री
श्री राजेन्द्र - सुनीतिरीतिकुशले देशे बृहद्भारत
जाते राष्ट्रपतौ, जवाहर - सुधी - मन्त्रिप्रधाने तथा ।
विद्वन्मंडलमण्डिते जयि लसदाजे बिहारभिधे
श्री जाकीरहुसैन - शासकवरे सट्राज्यपालेऽमले ।।
त्यक्त्वा लोकसुखं विलासललित स्वातन्त्र्ययुद्धे दृढो
जित्वा भारतमुन्नतं वितनुते या लोकसंवाव्रती ।
श्रीकृष्णः स हि राजसंस्कृत - महाविद्यालयस्याधुना
मुख्य मान्यविहारमन्त्रिषु शिलान्यास विधते शुभम् ।।
गंगानन्द - बुधे विचारनिपुणे शिक्षान्वितां मंन्त्रिता
समप्राप्त कृतिराजि के अहमदे शिक्षाविनिर्देशके ।
विद्वद् – रामपदार्थ – संस्कृत समित्यध्यक्षदशे वर
प्राचार्यऽभवदेतदुत्सवशुभारम्भा जटाशंकरे ।।
रस - विध-रव-नयन - विक्रम संवन्मार्ग वलक्षपञ्चम्याम् ।
शुके पाटलिपुत्रे मञ्जुलमह एष पूर्णता प्राप्तः ॥


राजकीय संस्कृत महाविद्यालय काजीपुर, पटना-४ कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय कामेश्वरनगर, दरभंगा की अंगीभूत स्नातकोतर इकाई है। पाटलिपुत्र की पाण्डित्य परम्परा प्राचीन काल से ही प्रसिद्ध है । इसी की पुर्नस्थापना हेतु इस संस्था की स्थापना हुई । परम सौभाग्य की बात है कि इस महाविद्यालय का शिलान्यास माननीय भारत के प्रथम राष्ट्रपति श्री राजेन्द्र प्रसाद, बिहार के प्रथम मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह, प्रथम राज्यपाल श्री जाकिर हुसैन की उपस्थिति में किया गया । यह महाविद्यालय बिहार की राजधानी पटना के हृदयस्थल में स्थित है।

भवन एवं भूमि का धनी यह महाविद्यालय अपने चतुर्दिक विकास के पथ पर अग्रसर है। हरे-भरे प्रांगण एवं प्राकृतिक सौन्दर्य होने के कारण यहाँ का वातावरण शांत एवं स्निग्ध है। अनुशासित छात्र एवं छात्राएँ इस महाविद्यालय की आत्मा हैं, जिनके वेद पाठों से यह महाविद्यालय अनुप्राणित होता रहता है । 'आ नो भद्राः कतवो यन्तु विश्वतः' अर्थात् सद्विचारों को हम चारों तरफ से आने दें, की धारा को अक्षुण्ण रखने में यहाँ के विद्वान आचार्य 'अहर्निशं सेवामहे' के भाव से समर्पित है।

बिहार राज्य में उच्चतर संस्कृत शिक्षा प्रदान करनेवाली यह सबसे पुरानी राजकीय संस्था है। बिहार राज्य सरकार ने १९५४ में संस्कृत शिक्षा की एक नयी पद्धति चालू की। इस पद्धति के अनुसार पटना प्रमण्डल में इसकी स्थापना की गई। इस महाविद्यालय और संस्कृत शिक्षा के विकास के लिए राज्य सरकार ने 'कर्णधार समिति' का गठन किया । कर्णधार समिति ने संस्कृत शिक्षा के सर्वांगपूर्ण विकास के लिए अपनी अनुशंसा 'शासिका समिति' को प्रदान की । शासिका समिति के पदेन अध्यक्ष प्रमण्डल के आयुक्त हुआ करते थे। कर्णधार समिति के अध्यक्ष पंडित श्री श्रीकांत ठाकुर, विद्यालंकार, संपादक, आर्यावर्त, पटना थे तथा अन्य सदस्य श्री जयदेव मिश्र, क्षेत्रीय शिक्षोपनिदेशक, पटना प्रमंडल, श्री रामपदार्थ शर्मा, सहायक शिक्षानिदेशक (संस्कृत) बिहार, एवं श्री जटाशंकर झा, प्राचार्य, राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, पटना, थे। शासिका समिति के अध्यक्ष श्री हरिनन्दन ठाकुर जी, आई० ए० एस० आयुक्त, पटना प्रमंडल तथा अन्य सदस्यों में पद्मश्री पंडित श्री विष्णुकांत झा, चौहट्टा, पटनाए के साथ सभी कर्णधार समिति के सदस्य थे।

राजकीय संस्कृत महाविद्यालय, पटना प्रारम्भ में बिहार संस्कृत एसोसियेशन पटना से परीक्षा निमित्त सम्बद्ध था। संस्कृत शिक्षा में बिहार में नवीन पद्धति का सूर्योदयकाल यहीं हुआ । प्राच्य विषयों (वेद, व्याकरण, साहित्य, ज्योतिष, दर्शन, पुराण, धर्मशास्त्र आदि) के अतिरिक्त आधुनिक विषय (अंग्रेजी, हिन्दी, इतिहास, राजनीति विज्ञान, मनोविज्ञान आदि) के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था की गई । १९६२ ई० दरभंगा महाराजाधिराज डॉ० सर कामेश्वर सिंह के सहयोग से बिहार में उन्हीं के भवन में कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा की स्थापना हुई तथा संस्कृत की स्नातक एवं स्नातकोतर स्तर की परीक्षाओं का संचालन विश्वविद्यालय से ही होने लगा ए बिहार संस्कृत एसोसिएशन मात्र संस्कृत की विद्यालय स्तरीय परीक्षा लेने वाली संस्था में परिवर्तित हो गई।

इस प्रकार १९८१ में इस महाविद्यालय को कामेश्वर सिंह दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय दरभंगा द्वारा अधिग्रहण किया गय उत्तरोत्तर विकासोन्मुख महाविद्यालय विश्वविद्यालय अनुदान आयोग, नयी दिल्ली की दो धाराओं २ (२) एवं १२ ( उ ) में निबंधित किय गया। स्थापना काल में इस महाविद्यालय में शास्त्री (स्नातक) से लेकर आचार्य (स्नातकोतर ) की शिक्षा दी जाती थी। वर्तमान वर्ष–२०१२ से उपशास्त्री (इन्टरमीडिएट) की भी शिक्षा दी जा रही है।

पाठ्यक्रम:-
(क) उपशास्त्री (आई० ए०) – द्विवर्षीय उपशास्त्री की परीक्षा - दूसरे वर्ष में सत्रान्त में ली जाती है।
(ख) शास्त्री सामान्य एवं प्रतिष्ठा - त्रिवर्षीय (प्रत्येक वर्ष (सत्र) के अंत में परीक्षा ली जाती है।
(ग) आचार्य – द्विवर्षीय प्रत्येक वर्ष (सत्र) के अंत में परीक्षा ली जाती है।
नोट :- आचार्य के पाठ्यक्रम को चार सेमेस्टरों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक वर्ष में दो सेमेस्टरों की परीक्षा का प्रावघा किया गया है।
पाठ्य विषय:-
प्राच्य विषय आधुनिक विषय
(क) साहित्य हिन्दी
(ख) व्याकरण अंग्रेजी
(ग) ज्योतिष अर्थशास्त्र
(घ) वेद

नोट:- उपर्युक्त विषयों में विद्वान आचार्यो के निर्देशन में शोधकार्य भी किये जाते है ।

छात्राओं के लिए अत्याधुनिक सुविधा सम्पन्न महिला छात्रावास की व्यवस्था है। छात्रों के लिए भी पृथक छात्रावास उपलब्ध है। छात्र/छात्राओं एवं शोधार्थियों के लिए समृद्ध पुस्तकालय है। यहाँ का विशाल कीड़ा क्षेत्र छात्र / छात्राओं के शारीरिक एवं मानसिक संवर्द्धन के लिए उपयुक्त है ।

राजकीय संस्कृत महाविद्यालय काजीपुर, पटना – ४ अपने लक्ष्यों और सिद्धान्तों पर अग्रसर है तथा यहाँ के विद्वान आचार्य एवं कर्मचारीगण अपनें कुशल एवं प्रखर प्रधानाचार्य डा० कुलानन्द झा के नेतृत्व में शालीनता पूर्वक अपने कार्यो का निर्वहण कर रहें हैं।